नगरीय कोलाहल तथा उत्तेजक अशांति के माहौल से सर्वथा दूर विस्तृत भूखण्ड के सहज सुरम्य वेणु कुंज की तपोवनी में स्थित ‘“रामदेव शारदा महाविद्यालय" शांति निकेतन की गरिमा और महिमा का बड़ा ही पवित्र प्रतीक और पर्याय है । उत्तर में रेल पथ तथा दक्षिण पूर्व में पक्की सड़क के मध्य विस्तृत रूप से विकीर्ण इसका प्रांगण हर तरह से सुरक्षित और आवागमन की हर सुविधा से मंडित है। कृषि क्षेत्र से घिरा यह महाविद्यालय एक ओर जहाँ ग्रामीण सांस ले रहा है, वहीं दूसरी ओर यह अधुनातन प्रगति वैज्ञानिक अध्ययन-अध्यापन के ज्ञान के सुनहले सपनों को साकार करने के स्तुत्य प्रयास का परिचय दे रह

इस महाविद्यालय की स्थापना 15 जुलाई 1963 को स्थानीय गणमान्य सामाजिक कार्यपुरुषों एवं शिक्षाविदों की प्रेरणा पाकर सहज, सरल, उदार और उत्कृष्ट शिक्षा प्रेमी स्वनामधन्य स्व॰ रामदेव शारदा द्वारा की गयी ।

इस महाविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य गरीब, उपेक्षित और साधनहीन परिवारों से आये छात्र-छात्राओं के बीच उच्च शिक्षा की ज्योति को प्रज्ज्वलित करना है। विगत 60 वर्षों के अस्तित्वकाल से यह विद्यामंदिर अपने इस उद्देश्य के पालन में तत्पर है तथा शिक्षा के मार्ग को सतत् प्रशस्त किया है।

यह जिला मुख्यालय कटिहार से तीस किलोमीटर पूर्वोत्तर दिशा में आजमनगर प्रखण्ड में अवस्थित है। महानन्दा और कनकई नदियों के पावन आंचल में स्थित सालमारी एक प्रसिद्ध जूट व्यापार केन्द्र रहा है। शिक्षा और संस्कृति के दृष्टिकोण से पिछड़े इस इलाके में (देशिया, पोलिया एवं अल्पसंख्यक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र) पूर्व के व्यवसायी विद्यानुरागी वर्गों, स्थानीय गणमान्य नागरिकों के द्वारा महाविद्यालय के निर्माण हेतु लिया गया संकल्प एवं उसको मूर्त रूप देने के प्रयास को हम बयां नहीं कर सकते । उनकी जितनी प्रशंसा की जाय, वह कम ही होगी ।

स्थानीय जनता ने भी महाविद्यालय संचालन हेतु सहर्ष सहयोग दिया । 15 जुलाई 1963 ई. को इस महाविद्यालय का उद्घाटन प्रमुख साहित्यकार विहार विधानसभा के अध्यक्ष साहित्य वाचस्पति स्व॰ लक्ष्मी नारायण सुधांशु के कर कमलों द्वारा संम्पन्न हुआ।

सन् 1976 ई० में श्री भोला राम अग्रवाल शासी निकाय के सचिव ने अपने स्वर्गीय भाई पृथ्वीचन्द अग्रवाल के नाम से अन्तर विज्ञान स्नातक संकाय की पढ़ाई हेतु कुल दान राशि प्रदानकर शिक्षण कार्य शुरू करवाया, जिसकी सम्बद्धता एवं स्वीकृति मिथिला विश्वविद्यालय और बिहार सरकार से प्राप्त हुई ।

1978-79 से श्री भोला राम जी के प्रयास से अन्तर वाणिज्य की पढ़ाई भी इस महाविद्यालय में शुरू हो गयी ।

सालमारी के शिक्षा जगत का इतिहास स्व० पृथ्वीचन्द अग्रवाल के नाम से प्रारम्भ होता है। एक सच्चे समाजसेवी, विद्यानुरागी होने के नाते उन्होंने प्राथमिक विद्यालय से लेकर महाविद्यालय तक की स्थापना एवं संचालन में अपनी अविस्मरणीय भूमिका निभाई । निष्ठा एवं सच्ची लगन के कारण ही सालमारी स्थित सभी शिक्षण संस्थाओं के आजीवन संस्थापक सचिव बने रहे ।

स्थानीय दाता श्री पुरूषोत्तम अग्रवाल ने अपने स्व० पिता लखी अग्रवाल के नाम से महाविद्यालय परिसर में छात्रा मनोरंजन कक्ष का निर्माण करवाया है।

दिवंगत विधायक भोला राय के द्वारा महाविद्यालय को छात्रा मनोरंजन कक्ष मिला है।

वर्तमान में महाविद्यालय परिसर में यू.जी.सी. की अनुदान राशि से बना पुस्तकालय भवन, विज्ञान प्रयोगशाला भवन, महिला छात्रावास अवस्थित है । महाविद्यालय के फंड से साईकिल शेड एवं रात्रि विश्रामालय बना है, समय के अन्तराल में यह महाविद्यालय चार विश्वविद्यालयों का अंग बनकर इस पिछड़े इलाके को शिक्षित कराने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है।

  • सन् 1975 तक यह, भागलपुर विश्वविद्यालय का एक अंग रहा।
  • तत्पश्चात 1975 से यह मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के अन्तर्गत एक इकाई रहा ।
  • जनवरी 1991 में भूपेन्द्र नारायण मंडल, मधेपुरा विश्वविद्यालय का एक अंगीभूत इकाई बना ।
  • 18 मार्च 2018 से यह पूर्णियाँ विश्वविद्यालय, पूर्णियाँ के अधीन लोकप्रिय शिक्षा केन्द्र है।

यह महाविद्यालय यू. जी. सी. के अधीन 2एफ एवं 12 बी के अन्तर्गत आता है ।

यहाँ कला, विज्ञान, वाणिज्य संकाय में डिग्री प्रतिष्ठा स्तर की पढ़ाई होती है। महाविद्यालय परिसर में लगभग 10 एकड़ जमीन है जिसके पश्चिम-दक्षिण एवं पश्चिम में लगभग 4 एकड़ भूमि में महाविद्यालय है। इसी महाविद्यालय के छात्र श्री मोहनलाल अग्रवाल जी एम. एल. सी. के द्वारा दो पाखड़ एवं ताड़ (वर्ण शंकर) वृक्ष के चारों ओर राज्य सरकार के निधि कोष से चबुतरा बना है। इससे यहाँ की शोभा बढ़ गयी है। साथ ही महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं को वृक्ष के नीचे बैठने एवं प्रकृति का आनन्द लेने का सुअवसर मिला है।

महाविद्यालय के विकास के लिए माननीय सांसद श्री दुलाल चन्द गोस्वामी के अथक प्रयास से महाविद्यालय में विद्युत आपूर्ति के लिए अलग से ट्रान्सफारमर की व्यवस्था की गई है।

यहाँ के पूर्ववर्त्ती अनेकों छात्र-छात्राएँ अच्छे-अच्छे पदों पर कार्यरत हैं।

यहाँ से उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं का प्रतिशत अन्य अंगीभूत महाविद्यालय से अच्छा रहा है।

महाविद्यालय परिसर में दो आकर्षक वर्ण संकर वृक्ष कोशी प्रमंडल का दर्शनीय वृक्ष है। यह महाविद्यालय के लिए गौरव की बात है । महाविद्यालय परिसर प्राकृतिक सुन्दरता से भरा पड़ा है । आप आकर इसकी सुन्दरता का आनन्द ले सकते हैं ।